Wednesday, June 25, 2014

सा विद्या या विमुक्तये


तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।
आयासायापरं कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम्॥


--श्रीविष्णुपुराण १-१९-४१



कर्म वही है जो बन्धनका कारण न हो और विद्या भी वही है जो मुक्तिकी साधिका हो। इसके अतिरिक्त और कर्म तो परिश्रमरुप तथा अन्य विद्याएँ कला-कौशलमात्र ही हैं॥

Monday, June 23, 2014

संन्यासी


ज्ञेयः स नित्यसंन्यासी यो न द्वेष्टि न काङ्क्षति।
निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते।।


अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः।
स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः।।

Saturday, June 21, 2014

उपनिषद्


ईश-केन-कठ-प्रश्न-मुण्ड-माण्डूक्य-तित्तिरि।
एतरेयं    च    छान्दोग्यं   बृहदारण्यकं   तथा॥


१. ईशावास्योपनिषत्
२. केनोपनिषत्
३. कठोपनिषत्
४. प्रश्नोपतिषत्
५. मुण्डकोपनिषत्
६. माण्डूक्योपनिषत्
७. तैत्तिरीयोपनिषत्
८. बृहदारण्यकोपनिषत्
९. छान्दोग्योपनिषत्
१०. ऐतरेयोपनिषत्

रूपकाः


नाटकं   सप्रकरणं   भाणः  प्रहसनं  डिमः।
व्यायोगसमवकारौ वीथ्यङ्केहामृगा दश॥


१. नाटक      २. प्रकरण       ३. भाण     ४. प्रहसन    ५. डिम
६. व्यायोग   ७. समवकार    ८. वीथि    ९. अङ्क     १०. इहामृग

Friday, June 20, 2014

किमर्थं कर्म करणीयम् ।


कायेन     मनसा     बुद्ध्या     केवलैरिन्द्रियैरपि ।
योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वाऽऽत्मशुद्धये ॥
– श्रीमद्भगवद्गीता ५.११



  

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सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः


ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते     न    स    पापेन     पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥
-- श्रीमद्भगवद्गीता ५.१०



 

Lotus


 

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Thursday, June 19, 2014

लकाराः धातुगणाः च


भ्वाद्यदादी   जुहोत्यादिर्दिवादिः    स्वादिरेव. च।
तुदादिश्च       रुधादिश्च       तनुक्र्यादिचुरादयः॥
एते  दश  गणाः  प्रोक्ता मुनिभिस्तत्त्वदर्शिभिः।
लड्  वर्तमाने  लेड्   वेदे भूते लुङ् लङ् लिटस्तथा॥
विध्याशिषोर्लिङौ लोट् च लुट् लृटौ च भविष्यति।
लृङ्   क्रियाया अनिष्पत्तौ लकारा दश कीर्तिताः॥


धातुगणाः
१. भ्वादिः          २. अदादिः          ३. जुहोत्यादिः          ४. दिवादिः          ५. स्वादिः
६. तुदादिः          ७. रुधादिः          ८. तनादिः                ९. क्र्यादिः          १०. चुरादिः

 

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